मंगलवार, 28 जनवरी 2020

...गुरु नानक के तेज़ से पिघल गया पत्थर



लेह-कारगिल राजमार्ग पर एक गांव है- बासगो। यहां सड़क के किनारे एक गुरुद्वारा है, जो गुरुद्वारा पाथर या पत्थर साहिब नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारे में 8 फीट ऊंचाई और 8 फीट व्यास वाला एक बड़ा चट्टान है। स्थानीय लोग इसे विशालकाय चट्टान को ‘नानक लामा’ बुलाते हैं।
      कहा जाता है कि 1517 ई. में गुरु नानकदेव सुमेर पर्वत, नेपाल, सिक्किम और तिब्बत के रास्ते सिंधु नदी के किनारे-किनारे चलते हुए लद्दाख के बासगो में पहुंचे। इस इलाके में एक दैत्य रहता था, जिसके अत्याचार से स्थानीय निवासी आतंकित थे। गुरु नानक को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने नदी के किनारे ही धूनी रमा ली। वहीं लोगों को उपदेश देने लगे। स्थानीय लोगों को विश्वास हो गया कि ‘नानक लामा’ दैत्य के अत्याचारों से उन्हें छुटकारा दिला देंगे। यह सब देखकर दैत्य ने गुरु नानक को जान से मारना चाहा। एक दिन जब गुरु नानक ध्यानस्थ थे, तब दैत्य ने ऊपर से एक विशाल शिलाखंड उनकी ओर लुढ़का दिया। चट्टान लुढ़कता हुआ जब गुरु नानक के करीब आया तो उनके तेज से वह मोम की तरह पिघलने लगा। जब यह चट्टान गुरु नानक की पीठ से टकराया तो उनकी पीठ इसमें धंस गई।
       दैत्य को लगा कि गुरु नानकदेव पत्थर के नीचे दब गए। वह नीचे आया तो देखा कि नानकदेव ध्यानमग्न बैठे हैं। दैत्य ने उन्हें कुचलने के लिए चट्टान को अपने पैर से दबाया तो उसका पैर उसमें धंस गया। वह जितना ही पत्थर को पैर से दबाता, उसका पैर मोम सरीखे पत्थर में धंसता जाता। यह सब देखकर उसे अहसास हुआ कि जिसे वह मारने का प्रयत्न कर रहा है, वह को सामान्य व्यक्ति नहीं है। वह गुरु नानक की आध्यात्मिक शक्ति से बहुत प्रभावित हुआ। उसने गुरु नानक से क्षमा मांगी तब उन्होंने दैत्य से तीन बातें कही- बुरे कर्म का त्याग करो, बुराई से दूर रहो और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करो। इस शिलाखंड पर दानव के पैर के निशान के साथ गुरु नानक देव के शरीर की छाप भी है। गुरुद्वारा पत्थर साहिब में इस चट्टान को देखा जा सकता है।

ऐसे बना गुरुद्वारा

कुछ साल पहले सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के कर्मचारी लेह-निम्मू सड़क मार्ग का निर्माण कर रहे थे। सड़क बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों को बुलडोजर से हटाया जा रहा था। इसी दौरान बुलडोजर चालक के साथ रोचक घटना घटी। पत्थर हटाने के क्रम में जब वह एक बड़े पत्थर के पास गया तो बुलडोजर का इंजन बंद हो गया। उसने फिर से बुलडोजर स्टार्ट कर पत्थर को हटाना चाहा तो फिर वह बंद हो गया। कई घंटे तक प्रयास करने के बाद जब उसे सफलता नहीं मिली तो बुलडोजर पीछे ले जाने के उद्देश्य से उसे स्टार्ट किया तो वह चल पड़ा। चालक एक बार फिर पत्थर हटाने के लिए पास पहुंचा तो इंजन फिर बंद हो गया।
       सड़क निर्माण में जुटे कर्मचारियों ने अपने अधिकारी, जो कि मेजर रैंक का था, उसे सूचित किया। संयोग से वह गुरु नानक का भक्त था। अधिकारी वहां पहुंचा और शिलाखंड का मुआयना किया। चट्टान के पीछे पड़े लकड़ी के एक छोटे बक्से पर उसकी निगाह ठहर गई। अधिकारी को लगा कि यह कोई मामूली शिलाखंड नहीं है। तब उन्होंने स्थानीय लोगों से पूछताछ की। पता चला कि यह शिलाखंड ‘नानक लामा’ मंदिर है। एक परिवार इसकी देखभाल करता था। उसी ने प्रसाद और दान के लिए लकड़ी का बक्सा चट्टान के पास रखा था। यह जानने के बाद सेना ने सड़क मार्ग को बदलने का फैसला लिया। साथ ही, वहां एक झोपड़ी बनाई और एक सिख सैन्यकर्मी को उसकी देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया। आज यह स्थान गुरुद्वारा पत्थर साहिब के नाम से प्रसिद्ध है।



शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

श्रीकृष्‍ण को 'गोविन्‍द' की पदवी ऐसे मिली


वृन्‍दावन आने के बाद श्रीकृष्‍ण ने इन्‍द्रयाग का उत्‍सव बंद करा दिया था। इसमें इन्‍द्र की पूजा की जाती थी। इसकी जगह उन्‍होंने गोवर्धन पूजा शुरू कराई। इससे खिसियाकर इन्‍द्र ने जबरदस्‍त मूसलाधार बारिश कराई। इससे वृन्‍दावन के लोग घबरा गए। तब इन्‍द्र का घमण्‍ड तोड़ने के लिए श्रीकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और लोगों को उसके नीचे आश्रय दिया। आखि़र में थक हार कर इन्‍द्र ने श्रीकृष्‍ण के आगे समर्पण किया और अभयदान मांगते हुए श्रीकृष्‍ण को 'गोविन्‍द' की उपाधि दी। साथ ही, अपने बेटे अर्जुन को भी श्रीकृष्‍ण के सुपुर्द किया। श्रीकृष्‍ण इससे संतुष्‍ट हुए और उन्‍होंने दोबारा इन्‍द्रयाग उत्‍सव शुरू कराया।

ध्‍यान की सही प्रक्रिया

ध्यान के लिए पहला काम है स्थिति। सबसे पहले कहीं भी, किसी भी तरह आराम से बैठ जाएं। कुर्सी पर, ज़मीन पर या कहीं भी। पैरों को मोड़ें और हाथ की अंगुलियों को आपस में फंसाएं। अंदर और बाहर की आवाजों पर रोक लगाइये। मंत्र का उच्चारण भी नहीं करना है। शरीर को बिल्‍कुल ढीला छोड़ दीजिए। पैरों को मोड़ने और अंगुलियों को फंसाने से शक्ति का दायरा बढ़ जाता है। स्थिरता बढ़ जाती है। चूंकि आंखें दिमाग का द्वार हैं, इसलिए इसे भी बंद कर लें। वरना यह भटकाएगा। सोचना, मंत्रोच्चारण, अंदर या बाहर की कोई भी ध्वनियां , मन की क्रियाएं हैं। इन पर रोक लगाना होगा। शरीर ढीला छोड़ने पर चेतना दूसरे कक्ष में पहुंच जाती है। अगर विचारों और बाहरी शोर ध्‍यान भटका रहे हैं तो एक उपाय कर सकते हैं। अपनी सांसाें पर ध्‍यान दीजिए। प्राकृतिक या स्‍वाभाविक तरीके़ से सांस लें। बस सांसों की आवाजाही पर ध्‍यान रखें। अन्‍य विचारों को हटा दें। सांसों में खो जाएं। धीरे-धीरे महूसस होगा की सांसें छोटी होती जा रही हैं। आखि़र में यह बहुत छोटी हो जाएगी। तब यह थर्ड आई यान ज्ञान चक्र के पास चमक का रूप ले लेगी। इस दशा में हर किसी में न सांस रहेगी, न विचार। यह बिना विचारों की दशा है। इसे निर्मल स्थिति कहते हैं। यह ध्यान की स्थिति है। इस

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

अहंकार से बनी है सृष्टि

पूरी सृष्टि अहंकार से निर्मित है। शास्‍त्र-पुराणों में अहंकार तीन प्रकार के बताये गये हैं- सात्विक (वैकारिक), राजस (तैजस) और तामस (भूतादि रूप)। सात्विक अहंकार से दस इन्द्रियों के अधिष्‍ठाता दस देवता और 11वीं इन्द्रिय मन (- के भी अधिष्‍ठाता देवता) उत्‍पन्‍न हुए हैं। वहीं, इन्द्रियों की उत्‍पत्ति तैजस यानी राजस अहंकार से हुई है। तामस अहंकार से आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्‍वी का निर्माण हुआ। विभिन्‍न प्राणियों की उत्‍पत्ति करने वाले भगवान् स्‍वयंभू श्रीहरि ने सबसे पहले जल बनाया। इसमें अपनी शक्ति (वीर्य) का आधान (अधिष्‍ठान या स्‍थापन) किया।

भगवान को नारायण क्‍यों कहते हैं?

जल को 'नार' कहा गया है, क्‍योंकि इसकी उत्‍पत्ति नर से हुई है। 'नार' यानी जल ही पूर्व काल में भगवान् का 'अयन' अर्थात् निवास स्‍थान था। इसलिए भगवान् को नारायण कहा गया है।

ऐसे हुई सृष्टि की उत्‍पत्ति

अग्नि पुराण में अग्नि देव कहते हैं कि श्रीहरि ने जो वीर्य स्‍थापित किया था वह जल में सोने के अण्‍डे के रूप में प्रकट हुआ, जिसमें से ब्रह्मा निकले। ऐसा अग्नि देव ने सुना था। भगवान् हिरण्‍यगर्भ एक साल तक उस अण्‍डे में रहे और इसे दो भाग में तोड़ा। इससे दो लोक बने। एक का नाम 'द्युलोक' प़ड़ा ओर दूसरे को 'भूलोक' कहा गया। अण्‍डे के दोनों हिस्‍सों के बीच आकाश का निर्माण किया गया। जल के ऊपर पृथ्‍वी को रखा गया और दिशाओं को दस भागों में बांटा गया। प्रजापति की इच्‍छा सृष्टि निर्माण की थी, इसलिए उन्‍होंने काल, मन, वाणी, काम, क्रोध और रति आदि की रचना की। इसके बाद सबसे पहले उन्‍होंने विद्युत (आकाशीय बिजली), वज्र, मेघ यानी बादल, रोहित इन्‍द्रधनुष, पक्षियों और पर्जन्‍य का निर्माण किया। फिर यज्ञ की सिद्धि के लिए मुंह से ऋग्‍वेद, यजुर्वेद और सामवेद को प्रकट किया। इन वेदों से साधुओं ने देवताओं को प्रसन्‍न करने के लिए यज्ञ किया। इसके बाद ब्रह्मा ने अपनी भुजा से छोटे-बड़े भूतों को उत्‍पन्‍न किया। सनत्‍कुमार के अलावा क्रोध से प्रकट होने वाले रुद्र को जन्‍म दिया। ब्रह्मा ने सात ब्रह्म पुत्रों मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्‍त्‍य, पुलह, क्रतु, और वशिष्‍ठ को जन्‍म दिया। ये सभी उनके मन से उत्‍पन्‍न हुए थे, इसलिए मानस पुत्र कहलाए।

नर आैर नारी की उत्‍पत्ति

ब्रह्म पुत्रों की उत्‍पत्ति के बाद ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो भाग किये। आधे हिस्‍से से नर और आधे से नारी की उत्‍पत्ति हुई। फिर उस नारी के गर्भ से संतानें उत्‍पन्‍न कराईं जो स्‍वायम्‍भुव मनु और शतरूपा नाम से प्रसिद्ध हुए। इनसे ही मनुष्‍यों की उत्‍पत्ति हुई।

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

The Symbol You Choose From Below Gives a Clear Message for Your Future!

बुधवार, 14 सितंबर 2016

Six rules of life

I have learned many things in my short time on this planet. The kind of things we all need reminding of from time to time, but we easily forget. If we follow these things, can move ahead simply.

Rule 1.  Most shit don't matter.

The stuff you spend hours worrying about or getting excited over often doesn't really matter. Focus instead on the deeper things that will really count toward a happy life.


Rule 2. Let go of the past.

Regrets and bitterness hold you back. The past cannot be changed. Life only ever moves forward.

Rule 3. Everyone dies with a "to do" list.

Don't make work your life, unless it's something you truly enjoy. Everyone dies with a "to do" list. Don't glamorize busy-ness.

Rule 4. Assholes exist.

Forget trying to make everyone happy. The world is full of asses. Don't waste your time trying to understand them or please them.

Rule 5. Stop waiting.

It's so easy to delay doing something, just because we're waiting for the situation to be perfect. It will never be perfect. Do it now anyway.

Rule 6. You're f*cking awesome... !

It's so easy to forget how amazing you are. You're always uniquely you, no matter how hard you try not to be. Accept it, love yourself, and go live it large.

शनिवार, 11 जून 2016

Are You ‘In Love’ Or Just Attached?

Love is passionate. Attachment is apathetic.

When you are in love, there is a fire within you. It can be an inferno of rage, or a kindled sweetness, but there is always that fire. Only when you can say you truly feel something is when you can say it’s love.

When you are merely attached to another, you never really experience anything close to that fire. You have mild moments of irritation, anxiety, and a slew of other things, but nothing that resembles the blaze within from love.

Love = Selflessness. Attachment = Self-centered.

Real love is all about the other person. When you are in love, you want to place your partner’s needs above your own. Everything you do is for them and has a little part of you inside of it.

Attachment is all about you. You want someone there for you, want someone to support you, or want them to benefit you in some way. You aren’t looking out for them. You’re looking out for yourself.

Love is freedom. Attachment is possession.

Being in love is great because you don’t need to constantly be with your partner in order to feel affection, to understand how they feel, or to feel secure. You love them enough to trust the bond.
When you are going through attachment, you feel like the only time you are “okay” is when you are with them. You can’t stand to be apart and when you are apart, you are always wondering what they are doing and with whom.

Love empowers each other. Attachment takes sides.

Feeling true love gives you wings to soar to new heights. It gives you renewed energy, and a sense of freedom. You share your dreams with your partner and listen to theirs with equal support.
When it is attachment, there is only a power struggle. You call the shots, and you make sure you are never left out. The only decision that matters, is yours.

Love has no time-limits. Attachment is timed.

When you feel real love, that’s all there is. Time doesn’t matter. When you love someone, you will always love them, regardless of how things work out in the end.
But attachment doesn’t work that way. Attachment has a deadline -an expiration date. Attachment isn’t real. Because neither one of you can grow in attachment, the beginning is already the end.
Being in a relationship is never easy 100% of the time. Things that matter take effort. True love is a beautiful and remarkable thing. But just because you haven’t found the real deal yet, doesn’t mean you won’t. Be patient and try to reevaluate yourself and your relationships. If you are in an attachment, let it pass so you can both be open to experiencing the wonder of real love.


Written by Raven Fon